आदरणीय भाईसाहब
सादर चरण स्पर्श
सोचा तो यह था कि कम लिखूंगा या नही ही लिखूंगा पर हर कोशिश करके हार गया । मन कहता है आप से कैसा बैर लिखता चल है इसी में तेरी खैर । चलिये आपने कविताई की राह पर चल कर मुझे एक बहाना ही थमा दिया है मुझे भी कुछ कहने के लिये । आपकी पंक्तियों के आधार पर प्रस्तुत है आपकी ही पंक्तिया -
बहुत कुछ है करने को
समय बहुत कम है लेकिन
करने को इतना कुछ है
समय कहां मिलता लेकिन
जीवन चलता जाता है
अपने ढर्रे पर चुन पलछिन
हम सोच में डूबे देर तलक
भरसक कोशिश करते हर दिन
क्या है जमा किया हमने
क्या मोल दिया हमने गिन-गिन
- अमिताभ बच्चन
(अनुवाद ः अभय शर्मा )
जीवन की आपाधापी में
कब बक्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ
कभी यह सोच सकूं ...
भाईसाहब एक प्रयास मेरी तरफ़ से अवश्य होगा कि भारतीय विद्या भवन के प्रांगण में बच्चन संध्या के अवसर पर प्रस्तुत हो सकूं, आपसे मिलने की इच्छा इतनी बलबती नही जितनी परम पूज्य कविवर बच्चन के जीवन की एक झलक पाने की ललक मेरे भीतर बसी हुइ है । उनके जीते जी न सही उनके जीवन से कुछ एक फूल चुनने का जो अवसर 28 नबंवर को प्राप्त हो सकता है उसे गंवा देना निरी मूर्खता होगी, प्रभु से प्रार्थना है कि मुझे निराश न करें । आपसे किसी प्रकार की गुजारिश या किसी भी किस्म की सहायता न मैं कर रहा हूं ना ही किसी अपेक्षा की प्रतीक्षा है । कविवर के कलम से जितने भी हीरे-मोती- माणिक पन्ने हमें मिलें है उनका कोई मोल नही लगाया जा सकता वे अनमोल हैं ।
आपका एक अनुज
अभय शर्मा
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