Monday, September 28, 2009

जन्मदिवस की शुभ कामनाये

परम प्रिय भाई,
जन्म-दिवस की हार्दिक बधाईयां

मैने अभी-अभी पढ़ा कि आप विजय दशमी के दिन पैदा हुये थे, तभी विजय नाम में आपकी सफ़लता का राज छुपा हुआ है । आप को यह बात एक दिन पहले बता देनी चाहिये थी कम से कम कुछ एक लोग केक खाने प्रतीक्षा ही पहुंच जाते, प्रतीक्षा को अभय की प्रतीक्षा उस दिन तक करनी पड़ेगी जब तक इसकी आवश्यकता नही आ पड़ेगी, व्यर्थ में मै आपका बहुमूल्य समय नष्ट नही कर सकता, यह उचित भी नही है, फिर जो कुछ मुझे कहना सुनना है यहां सब कुछ संभव हो पा रहा है । इस बात का यह अर्थ, तात्पर्य या आशय बिल्कुल भी नही है कि मै आपसे मिलने के लिये उत्सुक नही हूं या कभी नही रहा, इसके विपरीत मै आपसे मात्र सपने में मिलने से ही अत्यम्त प्रसन्न हो जाता हूं ।
अब शयन-कक्ष की ओर प्रस्थान करता हूं शायद आपसे आज फिर मुलाकात हो जाये, वैसे रोज़-रोज़ तो सपने में मिलना भी उचित नही है .. क्योंकि किसी ने कहा है -

अति परचै से होत है अरुचि अनादर भाय
मलयागिरि की भीलनी चंदन देत जराय ।
अभय शर्मा
००००००००००००००००००
आदरणीय भाईसाहब

सादर चरण स्पर्श

आपके द्वारा प्रस्तुत दोनो चित्र अत्यंत सुंदर है, कहिये तीनॊं ही चित्र ।
आज मै अपने आप से विशेष प्रसन्न नही हूं, इसके दो कारण है, एक तो यह कि जो लोग मुझे प्यार करते है, मैने उनसे अनुरोध किया है कि वे मेरा नाम न लिया करें, कोई भी व्यक्ति इस तरह के वर्ताब से प्रसन्न तो नही ही हो सकता । दूसरी बात जिसने मेरे चित्त को अशांत किया उसका संबंध अमृत की पढ़ाई से है । यह जानते हुये भी कि अगर अमृत पढाई में मन नही लगा रहा है तो कहीं न कहीं इसमें स्वयं मेरा ही दोष है, उसकी अर्द्ध वार्षिक परीक्षा दो दिन बाद शुरु होनी है और मैं यहां कवितायें लिखने में मशगूल हूं ।

चलिये शायद मेरे को इस बात का इल्म तो है कि मै अपने कर्तव्य से विमुख हो रहा हूं, देर-सवेर ही सही अगर मै उसके भविष्य के प्रति सचेत नही होता हूं तब मुझे उसे मारने-पीटने का कोई हक नही बनता है। दशहरा का पर्व ठीक-ठाक ही रहा मनोज मै समय निकाल कर कहीं भी न जा सका इस बात का मुझे अफसोस है, तथापि तुम्हारी लिस्ट शायद अगले वर्ष ही काम आ जाये । रामकृष्ण मिशन जाने के लिय तो मुझे अगले दशहरा तक प्रतीक्षा नही करनी पड़ेगी यह निश्चित है ।

मेरे सभी मित्रों से मेरा यह अनुरोध है कि आप मेरे कहे का बुरा ना माने आप जैसा उचित समझें वैसा ही करें, अगर मेरा या अन्य लोगों के नाम लिखने से आप को प्रसन्नता मिलती है तो मुझे इस तरह की पब्लिसिटी से कैसे इंकार हो सकता है ।

असीम प्यार एवं स्नेह के साथ यह पत्राचार यहीं समाप्त करता हूं, हिंदी में लिखने के अगर कुछ नुक्सान है तो कुछ फ़ायदे भी है, चाहकर भी लम्बा-चौड़ा पत्र मै नही लिख सकता ।
आपका सेवक

अभय शर्मा २८ सितंबर २००९

September 28, 2009 at 11:51 am
Familiar faces, not so familiar faces, faces often seen and met, faces not so often seen and met, faces seen but not met, and met but not seen एनौघ


आदरणीय भाईसाहब

प्रणाम


चेहरे कुछ पहचाने से
चेहरे कुछ अंजाने से
चेहरे अक्सर जाने-पहचाने से
कुछ कभी कभी मिलने वाले
कुछ कभी कभी दिखने वाले
चेहरे जाने पर ना पह्चाने से
चेहरे पह्चाने फिर भी अंजाने से

(मेरा मंतव्य, जॊ आपने कहना चाहा पर शायद कहा नही)
इन चेहरों की दुनिया में
मै भी क्या बस एक चेहरा हूँ
कुछ चेहरे है जो लगते है अंजाने से
कुछ अंजाने चेहरे लगते पहचाने से

अभय शर्मा
००००००००

आदरणीय अमित दा
इंकलाब ज़िंदाबाद
मैं नही जानता कि क्यों मुझे भगत सिंह से इतना प्यार है, मै नही जानता कि क्यों मुझे हिंदी से प्यार है, मैं यह भी नही जानता कि आपसे (अमिताभ बच्चन से) मुझे क्यों इतना अधिक प्यार है ।

कभी कभी हम नही जानते कि हम जो भी करते है ऎसा आखिर क्यों करते है, कभी कभी चाह कर भी हम अपने ही प्रश्नों के सही उत्तर क्यों नही ढूंढ पातॆ ।

स्वामी विवेकानंद से ही क्यों मुझे इतना लगाव है, क्यों मै हिन्दुस्तान और पाकिस्तान को फिर से एक साथ देखना चाहता हूं, आखिर क्यों मै परमाणु हथियारों के विरुद्ध आवाज उठाना चाहता हूं । कुछ एक सवाल हैं जो मेरे जहन में उठते हैं मगर जिनका जबाव मेरे पास नही है । मै नही मानता कि सभी प्रश्नों के उत्तर संभव है, या हर उत्तर का कोई न कोई प्रश्न होना आवश्यक है ।

यहां आज मै कुछ दो साल पहले लिखी गई भगत सिंह पर लिखी अपनी कविता दुबारा प्रस्तुत कर रहा हूं, संभव है मैने पहले यहां कभी न भी सुनाई हो और अगर सुनाई भी हो तो क्या फर्क पड़ता है, इस आशा के साथ आप लोगों के लिये यह कविता लिखी है कि आप भी आज शहीद-ए-आज़म को उनके 102वें जन्मदिन पर उन्हे याद कर लें ।

मनोज कुमार जी की शहीद मुझे बेहद पसंद है, खासकर उस फ़िल्म के सभी गाने बेहद लोकप्रिय हुए थे । ‘दम निकले इस देश की खातिर बस इतना अरमान है..’ या फिर ‘जिस चोले को पहन शिवाजी खेले अपनी जान पे, जिसे पहन झांसी की रानी मिट गई अपनी आन पे ..’ ।

आपका अधिक समय न लेते हुए कविता प्रस्तुत है –

कहता है मन आज कहो तुम कोई नई कहानी
ना हो जिसमें कोई राजा ना हो कोई रानी
आज़ादी के रंग भरे हों हो देशप्रेम से तानी
कह दे मनवा भगत सिंह की कह दे आज कहानी

हंस कर चले दीवाने जब फांसी थी उन्हे लगानी
बांहों में बांहें डाल यार के थे निकल पड़ॆ सैलानी
रो न सकी मां भगत बने थे आज़ादी के मानी
मर कर भी न मरे कभी थे वीर बड़े बलिदानी

पूरी कविता ( दो पद्य यहां नह लिख रहा हू) मेरी बैबसाईट पर उप्लब्ध है यहां उसका लिंक दे रहा हूं
http://www.angelfire.com/ab/abhayasharma/html/kaviweb.htm

कल आप सब से फिर मिलने आउंगा इस आशा के साथ यह पत्र यहीं समाप्त करता हूं, आप सब लोगों से जितना प्यार मिला है उसका अगर आधा भी आप सबसे कर सका तभी अपने जीवन को सार्थक मानूंगा ।

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है ..

अभय शर्मा 27 सितंबर 2009

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