Tuesday, September 29, 2009

आदरणीय भाईसाहब
सादर चरण स्पर्श

अभी-अभी डीएनए में आप पर लेख पढ़ा, यहां भी आपके विचार पढे, अच्छा लगा, जिस प्रकार की बातें आपने यहां पर या वहां कही पड्जकर मन को अच्छा लगा ।
विशेषकर जो आपने मां एवं बाबूजी के लिये कहा - मैं काम पर जाने के पहले तथा काम से आने के बाद कुछ क्षण उनके साथ बिताता था, मुझे उनका सहारा था, अंतिम दिनों में अधिक बातचीत न होने पर भी उनकी उपस्थिति ही मेरे लिये प्रेरणा का श्रोत थी ।
अपने अभिनय के प्रति जिस तरह का उल्लेख आपने यहां किया है उससे आपकी सादगी का पता चलता है, वास्तव में यह कहना कि जो भी अभिनय किया जाता है वह आपके निजी जीवन को नही दर्शाता, जो अभिनय किया जाता है, क्रमबद्ध अपने आप होता चला जाता है, फिर भी हम सभी यह बात स्पष्ट रूप से जानते है और मानते है कि हर कलाकार अपने अभिनय में एक जैसा नही होता, सबकी अपनी क्षमतायें है सबकी अपनी-अपनी कमियां या कमजोरियां होती है, आपके अभिनय में कोई कमी या कमजोरी तो देखने में नही आती तथापि हर फ़िल्म व्यावसायिक दृष्टि से हमेशा सफ़ल हो उसके मापदंड शायद कुछ अलग ही होते हैं , होते ही होंगे नही तो किस प्रकार एक फ़िल्म सफ़ल तो अन्य फ़िल्म को असफलता का मुंह देखना पड़ता है ।

चलिये 4 अक्टूबर से आप का नया कार्यक्रम बिग बॉस प्रारंभ होने जा रहा है, आपकी अपार सफ़लता के लिये भगवान से प्रार्थना है, हालांकि मेरी प्रार्थना की आप जैसे महान कलाकार को कोई आवश्यकता नही है तथापि आप से जिस प्रकार के प्रेम-संबंध यहां हम लोगों के बन गये है, आपकी सफ़लता में हम सबको विशेष हर्ष का अनुभव होगा । हमारी तो यही मनोकामना रहेगी कि इस विस्तारित परिवार के प्रमुख होने के नाते आपको हर कदम पर सफलता ही मिले इसीमें हमें सुख मिल सकता है । आपसे तो कई अपेक्षायें हम लोगों को सदा ही रहीं है आपके अभिनय को लेकर, आपने भी अधिकांश भाग में हम लोगों को निराश नही किया है इस बात का हमें अभिमान है। आपके कार्यक्रम कॊ विशेष सफलता मिलें इस आशा के साथ यह पत्र यही समाप्त कर आपसे आज्ञा चाहूंगा । आज से अमृत की अर्द्ध वार्षिक परीक्षायें शुरु हो गई हैं, ईश्वर उसको सफ़लता दे, पढ़ाई-लिखाई की ओर उसका ध्यान बना रहे, हमारे मध्य-वर्गीय परिवारों के लिये शिक्षा ही जीवन का सबसे उत्तम एवं जीवन यापन में सहायक एक समुचित सार्थक उपाय है ।

आपका अनुज
अभय शर्मा
पुनश्चः दिल्ली के ताज होटल में अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन इस सप्ताह चल रहा है जिसका मुख्य विषय एटम के शांतिपूर्ण उपयोगो से संबंधित है, मुझे इसमें शरीक होने का अवसर नही मिल सका है तथापि अगर संभव हो तो आप एकाध दिन उसमें हो आयें कोई मास्क पहन कर चले जाना, नही तो आप जानते ही हो भाई कि क्या हो सकता है । चलॊ बाकी बातें फुर्सत में करते है, नव्या-अगस्त्य को मेरा प्यार तथा अमृत का सत्कार देना ।

Monday, September 28, 2009

जन्मदिवस की शुभ कामनाये

परम प्रिय भाई,
जन्म-दिवस की हार्दिक बधाईयां

मैने अभी-अभी पढ़ा कि आप विजय दशमी के दिन पैदा हुये थे, तभी विजय नाम में आपकी सफ़लता का राज छुपा हुआ है । आप को यह बात एक दिन पहले बता देनी चाहिये थी कम से कम कुछ एक लोग केक खाने प्रतीक्षा ही पहुंच जाते, प्रतीक्षा को अभय की प्रतीक्षा उस दिन तक करनी पड़ेगी जब तक इसकी आवश्यकता नही आ पड़ेगी, व्यर्थ में मै आपका बहुमूल्य समय नष्ट नही कर सकता, यह उचित भी नही है, फिर जो कुछ मुझे कहना सुनना है यहां सब कुछ संभव हो पा रहा है । इस बात का यह अर्थ, तात्पर्य या आशय बिल्कुल भी नही है कि मै आपसे मिलने के लिये उत्सुक नही हूं या कभी नही रहा, इसके विपरीत मै आपसे मात्र सपने में मिलने से ही अत्यम्त प्रसन्न हो जाता हूं ।
अब शयन-कक्ष की ओर प्रस्थान करता हूं शायद आपसे आज फिर मुलाकात हो जाये, वैसे रोज़-रोज़ तो सपने में मिलना भी उचित नही है .. क्योंकि किसी ने कहा है -

अति परचै से होत है अरुचि अनादर भाय
मलयागिरि की भीलनी चंदन देत जराय ।
अभय शर्मा
००००००००००००००००००
आदरणीय भाईसाहब

सादर चरण स्पर्श

आपके द्वारा प्रस्तुत दोनो चित्र अत्यंत सुंदर है, कहिये तीनॊं ही चित्र ।
आज मै अपने आप से विशेष प्रसन्न नही हूं, इसके दो कारण है, एक तो यह कि जो लोग मुझे प्यार करते है, मैने उनसे अनुरोध किया है कि वे मेरा नाम न लिया करें, कोई भी व्यक्ति इस तरह के वर्ताब से प्रसन्न तो नही ही हो सकता । दूसरी बात जिसने मेरे चित्त को अशांत किया उसका संबंध अमृत की पढ़ाई से है । यह जानते हुये भी कि अगर अमृत पढाई में मन नही लगा रहा है तो कहीं न कहीं इसमें स्वयं मेरा ही दोष है, उसकी अर्द्ध वार्षिक परीक्षा दो दिन बाद शुरु होनी है और मैं यहां कवितायें लिखने में मशगूल हूं ।

चलिये शायद मेरे को इस बात का इल्म तो है कि मै अपने कर्तव्य से विमुख हो रहा हूं, देर-सवेर ही सही अगर मै उसके भविष्य के प्रति सचेत नही होता हूं तब मुझे उसे मारने-पीटने का कोई हक नही बनता है। दशहरा का पर्व ठीक-ठाक ही रहा मनोज मै समय निकाल कर कहीं भी न जा सका इस बात का मुझे अफसोस है, तथापि तुम्हारी लिस्ट शायद अगले वर्ष ही काम आ जाये । रामकृष्ण मिशन जाने के लिय तो मुझे अगले दशहरा तक प्रतीक्षा नही करनी पड़ेगी यह निश्चित है ।

मेरे सभी मित्रों से मेरा यह अनुरोध है कि आप मेरे कहे का बुरा ना माने आप जैसा उचित समझें वैसा ही करें, अगर मेरा या अन्य लोगों के नाम लिखने से आप को प्रसन्नता मिलती है तो मुझे इस तरह की पब्लिसिटी से कैसे इंकार हो सकता है ।

असीम प्यार एवं स्नेह के साथ यह पत्राचार यहीं समाप्त करता हूं, हिंदी में लिखने के अगर कुछ नुक्सान है तो कुछ फ़ायदे भी है, चाहकर भी लम्बा-चौड़ा पत्र मै नही लिख सकता ।
आपका सेवक

अभय शर्मा २८ सितंबर २००९

September 28, 2009 at 11:51 am
Familiar faces, not so familiar faces, faces often seen and met, faces not so often seen and met, faces seen but not met, and met but not seen एनौघ


आदरणीय भाईसाहब

प्रणाम


चेहरे कुछ पहचाने से
चेहरे कुछ अंजाने से
चेहरे अक्सर जाने-पहचाने से
कुछ कभी कभी मिलने वाले
कुछ कभी कभी दिखने वाले
चेहरे जाने पर ना पह्चाने से
चेहरे पह्चाने फिर भी अंजाने से

(मेरा मंतव्य, जॊ आपने कहना चाहा पर शायद कहा नही)
इन चेहरों की दुनिया में
मै भी क्या बस एक चेहरा हूँ
कुछ चेहरे है जो लगते है अंजाने से
कुछ अंजाने चेहरे लगते पहचाने से

अभय शर्मा
००००००००

आदरणीय अमित दा
इंकलाब ज़िंदाबाद
मैं नही जानता कि क्यों मुझे भगत सिंह से इतना प्यार है, मै नही जानता कि क्यों मुझे हिंदी से प्यार है, मैं यह भी नही जानता कि आपसे (अमिताभ बच्चन से) मुझे क्यों इतना अधिक प्यार है ।

कभी कभी हम नही जानते कि हम जो भी करते है ऎसा आखिर क्यों करते है, कभी कभी चाह कर भी हम अपने ही प्रश्नों के सही उत्तर क्यों नही ढूंढ पातॆ ।

स्वामी विवेकानंद से ही क्यों मुझे इतना लगाव है, क्यों मै हिन्दुस्तान और पाकिस्तान को फिर से एक साथ देखना चाहता हूं, आखिर क्यों मै परमाणु हथियारों के विरुद्ध आवाज उठाना चाहता हूं । कुछ एक सवाल हैं जो मेरे जहन में उठते हैं मगर जिनका जबाव मेरे पास नही है । मै नही मानता कि सभी प्रश्नों के उत्तर संभव है, या हर उत्तर का कोई न कोई प्रश्न होना आवश्यक है ।

यहां आज मै कुछ दो साल पहले लिखी गई भगत सिंह पर लिखी अपनी कविता दुबारा प्रस्तुत कर रहा हूं, संभव है मैने पहले यहां कभी न भी सुनाई हो और अगर सुनाई भी हो तो क्या फर्क पड़ता है, इस आशा के साथ आप लोगों के लिये यह कविता लिखी है कि आप भी आज शहीद-ए-आज़म को उनके 102वें जन्मदिन पर उन्हे याद कर लें ।

मनोज कुमार जी की शहीद मुझे बेहद पसंद है, खासकर उस फ़िल्म के सभी गाने बेहद लोकप्रिय हुए थे । ‘दम निकले इस देश की खातिर बस इतना अरमान है..’ या फिर ‘जिस चोले को पहन शिवाजी खेले अपनी जान पे, जिसे पहन झांसी की रानी मिट गई अपनी आन पे ..’ ।

आपका अधिक समय न लेते हुए कविता प्रस्तुत है –

कहता है मन आज कहो तुम कोई नई कहानी
ना हो जिसमें कोई राजा ना हो कोई रानी
आज़ादी के रंग भरे हों हो देशप्रेम से तानी
कह दे मनवा भगत सिंह की कह दे आज कहानी

हंस कर चले दीवाने जब फांसी थी उन्हे लगानी
बांहों में बांहें डाल यार के थे निकल पड़ॆ सैलानी
रो न सकी मां भगत बने थे आज़ादी के मानी
मर कर भी न मरे कभी थे वीर बड़े बलिदानी

पूरी कविता ( दो पद्य यहां नह लिख रहा हू) मेरी बैबसाईट पर उप्लब्ध है यहां उसका लिंक दे रहा हूं
http://www.angelfire.com/ab/abhayasharma/html/kaviweb.htm

कल आप सब से फिर मिलने आउंगा इस आशा के साथ यह पत्र यहीं समाप्त करता हूं, आप सब लोगों से जितना प्यार मिला है उसका अगर आधा भी आप सबसे कर सका तभी अपने जीवन को सार्थक मानूंगा ।

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है ..

अभय शर्मा 27 सितंबर 2009

Monday, September 14, 2009

AB day 483 - Comments

Respected Brother
Sadar Charan Sparsh
Am I late.. yes.. I have missed two posts of the day 482 and today.. well today held something very very special for me in its store.. a few minutes back i was talking to Deepak Mehta of Michigan.. err.. my classfellow of 9th,10th and 11th at KVIIT Delhi.. the fellow who had earlier sent some messages over yahoo mailbox.. was available online for nearly an hour or so..
We had exchanged a world of information about the old school days.. I am glad that we could chat for such a long time.. that he is a great friend is difficult to be described.. in fact each and every school friend either from Delhi or Port Blair or even Agra (only have no contacts with even one of the friend from Air Force Station Agra..) was very very special .. something that can not easily describe or elaborate further..
it is a feeling that atleast a few can really understand.. and you brother with today’s definitive post of showing your warmth.. the warmth hidden in the wet of the eyes.. the description and your ability to finally fool Mr. Blog ji in putting across the bigger fonts.. we can all have a great laugh at your victory and join to cheer you up..
For the sentiments and feelings tha you have shared.. I am moved.. no.. I am not actually moved.. I am still stationary at my chair.. busy typing.. yet my mind has moved.. it has moved forward to hold you in still higher place than it had already been holding you.. you have grown few more inches taller to your tall 6 feet 2 inch physical frame.. The love.. the affection.. the intensity.. the connectivity.. the conversation.. the communication of thoughts.. every aspect of human relationship today has reached its zenith between us.. I mean you at the head of this blog and we the offshoots of that tree..
It has been a simply exalted experience to have been living with you for so long and in such a great atmosphere..

I shall take leave of you.. but before that I must thank God for Aishwarya not having H1N1 infection.. yes.. the media does blow things out of proportion.. maybe we can not conatin the flu virus.. we can always treat the effected patients and obsrve simple hygiene rules to curb its spread to pandemic levels.. Maybe the closing down of schools may not be the greatest measure yet any step taken to stop the spread of the H1N1 is a welcome step.. and here we must learn our lessons from the countries that have been managing far greater number of cases far more adequately than casuing panic amongst the population.. you word on it.. Sir!
Love and Affection
Abhaya Sharma, India August 17 2009

ab says:
September 10, 2009 at 4:43 pm
grateful for your affection Abhaya …

Sunday, September 13, 2009

Hindi Divas - Language Debate


Respected Brother
Sadar Charan Sparsh

Expect..

I expect that an expecting mother does not expect too much of the gender the expected baby assumes except it does not come with some unexpected or unaccepted deformities..

Accept it or not many people find it too difficult to see expect, except and accept as quite confusing they expect that when they use one of the three words they use it to be accepted in the expected manner except when they don't use it in a sentence.. without the positioning in a context we can expect that it becomes more difficult to accept our usage in its intended form except with the few brilliant who always are expected to derive an acceptable meaning that most others find difficult except in very few cases..

I know if I go further with my expected line of action I would not be acceptable to others except you and few others who know or understand my expected nature and accept me the way I am..

There was a willingness in you that you do wish and be able to communicate in other languages yet as you find an International language exists in the form of English that is around for good reasons the most accepted language in the world except in few parts of the world as China, Russia, French.. ( I am sorry it is not as an insult to these languages.. not at all)

To be able to communicate to the large group in a language of their own comes with much greater difficulty then what you expect.. if bigadda has not come to terms and already initiated action we must accept that they would have reasons for their expected behaviour.. one serious possibility is that there are wrong translations possible.. that may lead to more trouble than the help that you were expecting with such an arrangement.. some such factors are discussed below and are available for further debate.. from you as well the Fmxt..

1. How many languages do you start with the translation process

2. Which Languages do you choose from the fifteen national languages to be part of this blog.. and why the chosen and why not the ones not chosen..

3. Do you need only specific portions of your posts to be translated or the entire post.. part of the posts may become sometimes more difficult as to what is to be taken and what is to be left..

4. How does one go about the selection of translators for the job.. it is not only a matter of money involved alone.. one must be suitable for the job.. e.g. he/she should know you and your life in a reasonable manner so that could think and derive meanings which are beyond factual translations..

5. Does it have to be on the same blog or another blog.. imagine 15 languages on the same blog would clutter it just too much and 15 blogs would divide the FMXt into 15 groups.. some of the 15 logs may not really have any comments some days and there would also be a substantial loss of comments on the main blog..

6. Worst case would be f the responses are thrown into 15 languages (assuming te software and other things - willingness to express oneself in one's mother tongue for eaxmple are available).. what do you do with these comments.. do you wish that these comments are the translated back ino english and put up on the main English blog..

7. Assuming if all the queries and doubts that I have raised here are met satisfactorily.. just think of the man hours and your increased involvement with the blog.. it might just rob much of your time.. as such I have a feeling that you are indulging far too deeply with us.. mor than the expected and accepted.. an exceptional behaviour from someone who is blessed to act and provide some good entertainment..

These seven queries, arguments, doubts, viewpoint or whatever you think of them.. are coming from jus one individual in one sitting.. the list of possible doubts could actually be much larger.. I have not included Spanish the second largest international language.. though I have a feeling that Chinese (Mandarin) and Hindi would beat spanish only the statistics is not available to substantiate their case.. there are other International languages which have people who write here like Carla from Germany, Zhenya and Lena from Russia and I do not all those who speak different languages other than English at home..
Where do I conclude or rather what does one conclude..

If I were Amitabh Bachchan.. and if it were my blog.. I would not look forward for the external help of translators to complicate the issues.. I would rather include with the help of some of the members of FmXt to translate some short messages from me into their respective languages..

Of course, I would also initiate efforts to use Hindi far more significantly on this blog than its present level .. not for Hindi being my mother tongue or the provider of my bread ( butter is already gone .. at this age I don't think you need butter.. in any form) but for the simple fact that there has been a much larger association of Hindi amongst the countrymen.. and also that there are queries from the section of readers in their askance..

I know no Punjabi or Tamil or a Bengali would expect you to write in those languages. and let me tell you except in few cases do not expect that people would accept such kind of translations.. that would not be coming directly from you.. it would definitely miss the personal touch with what blogs are supposed to deal..

The last word on making the blog available in several langauges is a big no from me..

I would rather expect you to change the poll question and take the opinion of the follwers of this blog as to what do they think..

SHOULD I PUBLISH THE BLOG IN TRANSLATED VERSION INTO ALL NATIONAL LANGUAGES
a. It is a highly welcome idea but think of other world languages too
b. It appears a waste of resorces and avialbale talent
c. I will definitely raise your popularity
d. It should be your decision alone, it does not affect us at all..
e. I would prefer it to be a maximum of bilingual English and Hindi
f. Just English is fine enough

Then and only then brother should you jump to conclusions of making what you say n the national languages.. If you have guessed my response to be 'e' you are not far from the truth.. though I support all the last three equally.. now that is not done.. I or no one can cast three votes when we are expected to cast one opinion three is unacceptable except in a rare case when your turn comes to cast your vote too.. ( A tie or in case of minor differences in the margin..)

I expect I have not hurt your feelings that was never ever my intention.. I do not insist that you should like my exceptional post or accept it in totality.. yet if such a issue is not put up for poll I would feel hurt.. I care and respect your decisions.. yet once in a while you too should accept an acceptable request from us.. tha you call us the members of family.. no, you make the decision or act at your own but in democratic set up it is better to hear what the Junta says..

Love Affection and Pyaar
Abhaya Sharma September 14 2009

Post Script : Today being Hindi Divas I do submit an old poem for you and all Hindi speaking, understanding and liking people ( Renate is included among so many others lke Carla, Zhenya etc. and surprisingly many Indians here do not know Hindi- Kishore and Reshmi you ar not the only ones) I shall try to put up the anglicised version of it later.


कवि का सम्मान


फिर आज कवि के मन में
कोई उपज पनपती कविता है
(कवि ने सीख लिया था जग से)
कैसे कहां किसीसे कब क्या
जग में कितना कहना है
भीतर मन में उमड रही है
शब्दॊं की लटपट धार कहीं
झांक लिया अपने मन में
फिर एक बार हो ध्यान मग्न
भावों को संचित कर अपने
अपने कर में एक लिये कलम
(लिखना कवि ने प्रारंभ किया)
मस्तिष्क की सीमाऒं कॊ चीर
कवि जग में था बन गया पीर
चंचल चपल चतुर चंदन चुन
रच दिये गीत देकर नई धुन
अपने अधरॊं पर उन्हे सजा
जग के सम्मुख कर दिये लजा
वह बच्चन था या कॊई अन्य
कविता पढ़-सुन जग हुआ धन्य
कवि चला गया जब इस जग से
जग ने कवि का सम्मान किया

क्या जग ने कवि का सम्मान किया?

- अभय शर्मा
मुम्बई, भारत, 9 जुलाई 2008.

Psoted on day 510 of ABs blog on Hindi Divas day..

Tuesday, September 8, 2009

amitabha-abhaya varta

अमिताभः क्यों मेरे पीछे पड़ॆ हो ?
अभयः आपके आगे नही पड़ सकता ।
अमिताभः यह क्या मजाक है, कभी क्विज़, कभी कविता यह सिलसिला कहीं खत्म होगा भी या नही ?
अभयः यह कभी खत्म न होने वाला सिलसिला है भाई, लगता है ईंटरव्यू तो पढ़ा ही नही ।
अमिताभः पढ़ लिया, अच्छी खिचड़ी पक रही है तुम लोगों की, इसे खायेगा कौन ?
अभयः जो पकाता है वही खायेगा भी, अगर आपके पेट में दर्द है तो आपको भी थोड़ी परोस दें ।
अमिताभः मेरे पेट में कोई दर्द नही है, अगर सिर में दर्द हो गया तो समझ लो, समझदार को इशारा ही काफ़ी होना चाहिये, जानते हो ना मै कौन हूं ?
अभयः हां, भाई आप डॉन हैं, आप महान है, आप शहंशाह है, आप एक आजूबा हैं आप बेमिसाल है, आप क्या नही हैं ?
अमिताभः अच्छा-अच्छा अब बस करो, अगर एक उल्टे हाथ का पड़ गया तो मालूम है ना क्या होगा ?
अभयः अगर मारना ही है भाई तो सीधे हाथ का मारना, आप लैफ़्टी हो, उल्टे हाथ का बहुत कर्रा लगेगा ।
अमिताभः अच्छा यह बताओ यह कवितायें कहां से चुराते हो?
अभयः क्यों भाई ? अपको भी चुरानी हैं क्या ?
अमिताभः जबान लड़ाना खूब आ गया है, शर्म नही आती ?
अभयः भाई और कुछ लड़ा नही सकता हाथों का काम भी जबान से ही चला लेता हूं, पहले कभी-कभी आती थी आपकी बेशर्म देखने के बाद अब कभी नही आती ।
अमिताभः बातें मत बनाओ, सच सच बताओ, तुम कविता लिख लेते हो ?
अभयः हां, हां, सविता से शादी करने के बाद कविता लिखना ही तो बाकी रह गया है, बस ।
अमिताभः तब क्या अगर रानी से शादी करते तो कहानी लिखते ?
अभयः करवा दीजिये तुरंत पता चल जायेगा, अगली फ़िल्म की कहानी भी मिल जायेगी।
अमिताभः ये आजकल हिंदू-मुसलमानों को क्यों मिलवाने पर अड़े हो ?
अभयः क्योंकि कुछ लोग उन्हे लड़वाने पर तुले हुये हैं ।
अमिताभः क्या तुम मेरे लिये काम करोगे ?
अभयः दाम मिलेंगे तो क्यों नही करूंगा, आपने भी तो ठाकुर सामने शोले में यही शर्त रखी थी।
अमिताभः क्या क्या कर सकते हो?
अभयः कुछ भी कर सकता हूं, आप कह कर तो देखो, जिस काम को पांच आदमी एक दिन में कर सकत है उसे मै पांच दिन में पूरा कर सकता हूं, हां । बस नही कर सकता तो खड़े-खड़े आपकी हजामत नही कर सकता ।
अमिताभः बदतमीज क्या बकते हो, जानते नही तुम किस से बात कर रहे हो? अपने हाथ-पैरों का बीमा करवा रखा है या नही ?
अभयः भैया आप तो बेकार में ही गरम हो रहे हो, आप खड़े होगे तो मुंह पर क्रीम कैसे लगाउंगा, आप ठहरे 6 फुट 2 इंच मैं सिर्फ फ़ाइव एंड हाफ़, हजमत बनाने के लिये स्टूल लगाना पड़ेगा ।
अमिताभः यह क्विज़ का बेतुका सवाल जया से पूछने की क्या जरूरत थी, मुझसे नही पूछ सकते थे, मैं मर गया था क्या?
अभयः आप जवाब नही देते, पिक्चर राजेश खन्ना के साथ थी, आपसे पूछता तो मै मर जाता ।
अमिताभः कल से मेरे ब्लाग पर यह सब नही चलेगा ?
अभयः तो फिर क्या चलेगा?
अमिताभः जो भी लिखो छोटा लिखो, जितना हो सके उतना कम लिखो, लिखो तो कभी-कभी लिखो, कुछ आज तो कुछ एक महीने बाद लिखो । बात तुम्हारे कुछ पल्ले पड़ रही है या नही या सब सिर के उपर से जा रही है?
अभयः पल्ला तो मैने कल से ही झाड़ लिया था, पल्ले में कुछ डालना था पहले से क्यों नही बताया, यह बात मेरी समझ के बाहर है । वैसे भी जब मै लिखता हूं तब मै थोड़े ही लिखता हूं ।
अमिताभः भैये, तुम नही लिखते तो क्या कोई भूत आकर जबर्दस्ती तुमसे लिखवा जाता है, यह कैसा भूत तुम्हारे सिर पर सवार है ?
अभयः आप ही का भूत है सरकार ।
अमिताभः क्या बकते हो, मै जीता-जागता तुम्हारे सामने खड़ा हूं, 6 फुट 2 इंच का आदमी तुम्हें दिखाई नही देता?
अभयः आप महान है भाईसाहब, आप के जिंदा रहते हुये भी आपका भूत लोगों पर सवार रहता है, शायद भूतनाथ वाला भूत है या कोई अन्य भटकता हुआ भूत होगा दीवार, शोले या कसमे-वादे वाला आप तो कई फ़िल्मों में मर चुके हो भाई। उन्ही में से किसी एक का भूत होगा । वैसे आपके मरने का अंदाज़ तो दीवार में देखा था, मरते मरते भी क्या गजब के डायलाग बोले थे भाई मुझे तो लगता है वही भूत चढ़ गया है।
अमिताभः अबे बेबकूफ, पिक्चर में जब हम मरते है तब हम मरते थोड़े ही है, भूत का सवाल ही कहां पैदा होता है ?
अभयः तब क्या भाई भूत का जवाब पैदा होता है ? तनिक एक बात बताओ भैया यह भूत का जवाब भी क्या भूत के सवाल जैसा ही होता है ? क्या वह भी उतना ही खतरनाक या उतना ही डरावना होता है जैसे बाकी के भूत । यह सब क्या लिखवाये जा रहे हो हमसे रात में । आजकल वैसे ही हमें अकेला सोना पड़ता है, यह बात अब और आगे ना बढ़ाओ, हम तो बस निरे नाम के ही अभय है, असल जिंदगी में तो चींटी भी हम पर भारी पड़ती है । सुसरी काटती है तो समझो प्राण निकाल लेती है हलक मे से ।
अमिताभः अजीब घनचक्कर हो, पचास साल के हो गये हो और छोटी-छोटी या झूठ-मूठ की बातों से इस तरह घबराते हो जैसे पांचवी क्लास का बच्चा। चलो छोड़ो अगर तुम वाकई डर गये हो तो सोने से पहले हनुमान चालीसा पढ़ लेना ।
अभयः चला जा रहा था मै डरता हुआ हनुमान चालीसा पढ़ता हुआ, बोलो हनुमान की जय, जय-जय बजरंग बली की जय ।

AB Song quiz

Some of the quiz questions answered on videos from youtube..

1. Jahan sach na chale vahan jhiooth sahi..


2. Oas barse Raat bheege



3. Ya hai Mohabbat Ya Hai jawaani

AB day 486 - Very Special comments


Abhaya Sharma says:
August 21, 2009 at 8:56 am
fir teree kahaanee yaad aayee, fir teraa fasaanaa yaad aayaa
fir aaj humaaree aankhon ko, yek khwaab puraanaa yaad aayaa

Respected Brother
Sadar Charan Sparsh
An extremely stupendous effort at being what you are.. the best.. I chose this song not because it fits so well for the event.. I know your great liking of Waheeda ji.. like I love Meena Kumari I know your favourite has been Waheeda Rahman.. The song had been the msot haunting melody from Hindi film industry depicting emotions, sentimets and such stuff that makes one like it all the more.. the song..
Waheeda Rahman and Dilip Kumar’s Dil Diya Dard Liya.. was not as enchanting as I thought it should have been.. it had not been the greatest Dilip Kumar film yet it was good.. it was very good.. Pran sahab too had a memorable performance and the songs other than phir teri kahaani yaad aayi.. also had Koi sagar dil ko bahalaata nahi.. and guzare hain aaj ishq mein..
Well, It is worth a movie to watch for the two most talented actors in Dilip Sahab and Waheeda ji.. amost at their self-best.. A gruelling love story that had been quipped into more than the triangle.. The second half definitely overly belonged to Dilip sahab.. I did not know the man could also look so starry in the royal attire that had been used.. he did look superlative in this film.. though performance wise I would rate the recently watched Yahudi at a slightly higher level.. every old movie has its own charm and for me I am discovering Dilip sahab for the very first time.. I might have seen some of his more popular films like Naya Daur, Ganga Jamuna, Ram aur Shyam, Mashaal and even Shakti and historical Mughale Azam.. yet I feel the Dilip Kumar of Uran Khatola, Yahudi and Dil Diya dard Liya and a few other such movies is equally unbeatable bet..
No wonder bhaai that you held the thespian in such great lights and set your own standards in acting to be comaparable with his.. you have been better than the legend in a couple of movies.. the movies where you acted as Subir Kumar the singer of Abhimaan, Babu Moshay of Anand and the Vijay of Deewaar..
I bet you yourself would not disagree that it is difficuult to repeat such performances every now and then..

More later for your and the information and benefit of others.. Abhaya India and Abhaya Sharma are both one person.. one exists at home the other at office.. I somehow wanted to disown my surname.. yet it is not easy an the world would always know me by the name iven to me by my parents.. it is in that respect and as a mark of respect that I continue to be known as Abhaya Sharma to the world..

Abhaya Sharma August 21 2009 8:49 AM IST

PS Thanks for inclsuion of the names of the multitude of fellow bloggers.. it does serve some purpose.. it does serve as an acknowledgement.. it also serves to know that you brother are committed to your FmXt.. the way only you can be committed.. it gives and adds so much to our lives that we can harly ever be able to repay your faith in us.. your attachmnet and association with FmXt would definitely go down a long way whenever the blogs would be discussed and debated.. My sincere thanks to you for being able to manage what seemed an arduous task.. Have a great day bhaai…
Rahen na rahen hammahaka karenge
ban ke kali banke sawabaage vafa mein..

I Don’t know if I have goofed up the words again yet the feelings are beautifully representative of my being here with you and in the midst of such huge numbers of FmXt…

ab says:
August 21, 2009 at 9:03 am
lovely to know of our common interest ..

Monday, September 7, 2009

AB Day 503

Respected Brother
Sadar Pranaam
The post answers ahat Amrit had been asking for sometime.. he has been fast aleep.. I shall let him know that you did talk about Aladin..
This poem that I shared was in one noting pad.. the ones one gets at the conferences.. It was written few months ago I do not really know when.. I had not put the date there ..
I don’t know if I could ask you for some favours.. not for me.. though.. If it were possible.. if it were possible without much trouble could you share with us which songs did you really listened to when the night falls.. I ask for the rest who prefer to listen to some music to get a peaceful sleep.. used to listen to radio during school college days.. later it was HMV record player at Anand Bhavan.. I had bought one LP which had the songs and dialogues from your films and had two pictures on either side.. Those days my only possible source of entertainment was that alone.. No TV. not even a radio or transistor.. PC was out of question.. I used to have a few huge pictures pasted on my huge almirah door one of you the other of Dimple Kapadia.. probably the source was the G magazine .. and yes I do not know this GQ you mentioned.. I will need to find out later..
Coming back to our nightly discussion.. I would not question or probe you further..
For a change I would take an early leave.. only Sudhir should know that I am not hiding and very well taking note of what he is doing with the class.. gaane-vaane ki class hai to ek-aadh gana to main bhi gaa sakta hoon.. I was for a change watching a movie on Television.. Lawaaris.. Amrit wanted to see the mere angne mein.. your version.. but he went to sleep..
I have sung most of the Abhiman, Kabhi-kabhi and Muqaddar Ka Sikanadar songs during school and college days..

Tujhe thaame kai haathon se
milunga mad bhari raaton se..

and

suhhag raat hai
ghoonghat utha raha hoon mai
simat rahi hai tu Sharma ke
apani bahon mein..
or
Tujh bin sooni meri raatein
tujh bin mere din banjare
tere bina meri
mere bina teri
yeh Zindagi Zindagi na..

When I have such great collection of songs on my PC.. (no, I do not have an Ipod.. ) I do not find much time or opportunity to listen.. the Casette-player wwith radio was given to one of the baai long back.. I do plan to buy World Satellite radio soon..

I must quit now otherwise this mail would get stretched too long.. and I know you would find some inhibition in reading long posts from me.. (beta jitani der mein tumhaari ek post padhi jaati hai utni der mei to mai chaar paanch logo ki posts padh kar unko jawaab bhi de deta hoon..) Mujhe chhota hi to likhana nahi aata..
Aap sabko shabba khair, Subh Ratri and Gutten Nacht (Carla)
Abhaya September 6/7 2009

Important Addendum
I wish to know of the students of the AB school .. who do not mind enrolling their email ids.. r more important than that a brief introduction -
You could say..
I am interested in knowing more about:
Sudhir, Dr. Anshu, Archana (Bengaluru), Aishwaya TVM, Manoj Ojha, Vijaya, Sanjith, Mosusmi and Valorie Adams.. Pramod- I, Anahswar C., Lottus Bhopal, Sharmila, Shankar.. Kabeer, Afzaal, Amitabh Zibbu
I am sorry if I have left out some names.. don't fire your professor for that..
Name (even in case you use a nickname.. for connectivity..)
City (state would also do, not for discrimination , only for information)
Three most favourite AB Movies.
Email id (optional)
Interests in life (optiona) :
Blog/website if you have any :

It is not a must.. those who do not share the information would not loose their admission..