Friday, August 28, 2009

Amitabh Bachchan Day 494

फिर एक कहानी याद आई
फिर नया तराना याद आया
फिर तुमसे मिलने की खातिर
यह अभय दुबारा फिर आया

परम प्रिय अमित भाईसाहब
सादर प्रणाम
यह पहला अवसर होगा या शायद दूसरा या फिर तीसरा जब मैने आपको नाम लेकर संबोधित किया होगा, नही कारण कुछ भी नही है बस यूं ही सोचा, परिवर्तन के लिये देखते है, कैसा लगता है किसी इतने विशाल व्यक्तित्व को नाम लेकर पत्र लिखना । क्षमा चाहता हूं भाई मुझे तो ऎसा करना बिल्कुल भी अच्छा नही लग रहा है निल्कुल शोभा नही दे रहा । चलओ इन बातॊं को यहीं छॊड़ देते है । आगे बढ़ते है, उस हिंदुस्तान की बातें करने को जी चाहता है जिसने कभी इतिहास के पन्नों पर कुछ एक ऎसे भी लोगों को जन्म दिया है जिनका नाम आज भी अमर है और सदा ही अमर रहेगा ।

अपने भारत की तुमको तस्वीर दिखाता हूं
आओ मेरे साथ चलो उनसे मिलवाता हूं

यही जन्म था लिया बुद्ध ने
नानक की यह धरती थी
राणा प्रताप के घोड़े की
और झांसी वाली रानी की

वीर शिवाजी की गाथा की
टीपू की सुल्तानी की
भगत सिंह बलिदानी की
मंगल पांडे सेनानी की

एक एक योद्धा ऎसा था
कर्मभूमि का मातृभूमि का
जिसने शीश नवाकर अपना
सच कर डाला था सपना

अभय शर्मा 29, 30 अगस्त 2009 12.06 रात्रि प्रहर
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खडी हुई चट्टानों पर थी
चिल्ला कर कहती पुकारती
अख्टअमारा कहां खो गया
सागर की लहरें कर गर्जन
देती थी दस्तक दहाड़ कर
प्रिय तुम कहां चले थी कहती
बिलख-बिलख कर रोती जाती

सन्नाटे की रात में मैने
सागर तट पर खुद जाकर
अख्टमरा आवाज सुनी है
दिल को छूकर ठेस लगाती
हां मैने आवाज सुनी है
पर नही पता था अब तक
मुझको दर्दनाक किस्सागॊई यह

घर पर बैठे ही बैठे फिर
आज वही आवाज सुनी है
अख्टमरा की बात बता कर
याद पुरानी ताजा की है ।

(I was in Port Blair during the year 1971-1973 at the tender age of 12 to 14 and I was highly observant of these sounds.. especially I had found the sounds very fearful when I had visted the Junglee Ghat seashore on that fateful Holi when few of the friends who had gone to some beach I don’t remember which boarding on the truck had met an unseemingly cruel end in the road accident.. On the same day I later learned that my elder cousin Yogendra Kumar Soti had died in a road accident in Bijnor.. I had faced death in my full understanding for the first time.. and I was highly adamant to bard that truck that day but senior friends had denied me the right.. maybe had denied me to die then.. one day I have to though..)

अभय शर्मा 29, 30 अगस्त 2009 12.44 रात्रि

पुनश्चः आज किसीने कहा कि ऎसा लगता है कि तुम कविताओं की चोरी करते हो इस आशय से नही कि वह मुझे अपमानित करना चाह रहा था पर शायद इस्लिये कि उसे विश्वास नही होता था कि एक वैज्ञानिक का और कविता का कैसे नाता जुड़ सकता है । बहस के मूड में उस समय मै था नही और जिस तरह बात कही गई थी इस बात की गुंजाइश वहीं समाप्त कर दी गई थी, इतनी अच्छी कविता आप कैसे लिख सकते हो । वैसे मै अपनी तरफ़ से यह अवश्य जोड़ना चाहूंगा कि धन कमाने के उद्देश्य से मैने कविता कभी भी नही लिखी और शायद न कभी लिख ही पाउंगा । यह बात कह कर कुछ कुछ अपने मुंह मिया मिट्ठु बनने वाली कहावत के दोषारोपण का शिकार तो मैं बन हि रह हूं बेहतर होगा कि आगे कुछ न कहूं ।

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