आदरणीय भाई साहब
सादर प्रणाम
एक कविता आपके निमित्त प्रस्तुत करने का साहस किया है स्वीकार कर कृतार्थ करें –
मेरे हाथों में
जो हाथ तुम्हारा होता
हाथ तुम्हारा थामे
मै क्या तुमसे कहता
भाई तुम्हारी आभा
जग में फैल रही है
और तुम्हारे मन में
भाई मैल नही है
भाई मैल नही है
मै तो छोटा सा हूँ
नाम अभय है मेरा
कर पाउंगा कैसे
मै गुणगान तुम्हारा
फिर भी अपने हाथों में
पा हाथ तुम्हारा
पुलकित होकर झूम उठेगा
यह मन मेरा
क्या कहीं कभी यह सब
एक दिन तब संभव होगा
हम होंगे तुम होगे
हम होंगे तुम होगे
साथ निराला होगा ।
अभय शर्मा 29 अगस्त 2009 9 बजने में 2 मिनट
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